दिल्ली विश्वविद्यालय ने तमिलनाडु की दो दलित महिलावादी लेखिकाओं बामा फौस्टीना सूसाईराज और सुखरधारिणी को अंग्रेजी के पाठ्यक्रम से निकाल दिया है। साथ ही महाश्वेता देवी की कहानी “द्रौपदी” को भी पाठ्यक्रम से बाहर कर दिया गया।
दुनिया भर में भू-राजनीति की शतरंज बिछी हुई है। अमेरिका-ब्रिटेन चाहते हैं कि दुनिया के बाकी देश अपने धर्म-कर्म पर ध्यान दें। साइंस-टेक्नोलॉजी पर वो दे लेंगे।
निम्न जातियों को अभी भी जाति असहज करती है और इन जातियों के लोग अपनी जाति का खुलासा करने से हिचकिचाते हैं। वहीं, बीजेपी निम्न जातियों के माथे पर जाति का ठप्पा लगा देने की कवायद में जुटी हुई है।
शरिया क़ानून इसलाम की उस क़ानूनी व्यवस्था का नाम है जिसे इसलाम की सबसे प्रमुख व पवित्र पुस्तक क़ुरआन शरीफ़ व इसलामी विद्वानों के फ़तवों, उनके निर्णयों या इन सभी को संयुक्त रूप से मिलाकर तैयार किया गया है।
अदालतों में विशेष रूप से सुप्रीम कोर्ट और उच्च न्यायालयों में लंबित मामलों की बढ़ती संख्या आजकल चर्चा का विषय है। आख़िर इसका क्या निकल सकता है समाधान...
हिन्दुस्तान में तालिबान के समर्थन या विरोध की बहस बड़ा सियासी मुद्दा बन चुकी है। देशभक्ति और गद्दार की परिभाषाएं इस बहस के दौरान टेलीविजन चैनलों पर गढ़ी जा रही हैं।
अफ़ग़ानिस्तान में अब शासन प्रशासन पर तालिबान का कब्जा हो गया है। इस बीच अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन ने अफ़ग़ानिस्तान के मसले पर जो बयान दिया, वह उसके नीतिगत बदलाव के संकेत देते हैं।
प्रधानमंत्री मोदी ने आख़िर किसलिए घोषणा की है कि अब से हर वर्ष 14 अगस्त को 'विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस’ के तौर पर मनाया जाएगा? क्या यह उत्सव पराजय के लिए मनाया जा रहा है?
फ़िल्म निर्देशक और अफ़ग़ान फ़िल्म की महानिदेशक सहारा करीमी ने लिखा है कि तालिबान ने पिछले कुछ हफ्तों में कई प्रांतों पर कब्जा कर लिया है। उन्होंने हमारे लोगों का नरसंहार किया, कई बच्चों का अपहरण किया...
तालिबान के झूठे वादों पर यक़ीन कर रहे और सम्मोहक हेडलाइन लगा रहे लिबरल लोगों और मीडिया ने इतिहास से कुछ नहीं सीखा। सीखा होता तो तालिबान को शक की नज़र से देखते।
भारत की आज़ादी के 75वें वर्ष में प्रवेश करने से ठीक एक दिन पहले प्रधानमंत्री मोदी ने एलान किया है कि अब से हर वर्ष 14 अगस्त को 'विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस’ के तौर पर मनाया जाएगा।
भारत में समान नागरिक संहिता की पैरवी आज़ादी के समय से की जा रही है, लेकिन अब तक ऐसा नहीं हो पाया। मोदी सरकार भी इसके लिए प्रयास कर रही है, लेकिन क्या वह इसके लिए मुसलिमों का भरोसा जीत पाएगी?
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने जाति जनगणना की माँग क्यों की? क्या वह इसके ज़रिए अति पिछड़ों और अति दलितों को फिर से अपनों खेमे में लाने का दाँव चल रहे हैं?