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वसीम जाफर पर सांप्रदायिकता का आरोप आख़िर लगाया किसने?

उत्तराखंड क्रिकेट में वसीम जाफर को लेकर जो सांप्रदायिकता का विवाद खड़ा हुआ था वह अब एकाएक ख़त्म हो गया लगता है। और यह हुआ राज्य के क्रिकेट संघ के उन अधिकारियों के बयान से जिनके कथित बयान से यह विवाद खड़ा हुआ था। यानी साफ़ शब्दों में कहें तो उत्तराखंड क्रिकेट का सांप्रदायिकरण हुआ ही नहीं। अब कोई यह आरोप लगाता नहीं दिख रहा है कि वसीम जाफर ने वैसा कुछ किया। सांप्रदायिकरण करने और मुसलिम खिलाड़ियों से पक्षपात करने के आरोप की तो बात ही दूर है। अधिकारी अब उनकी तारीफ़ में कसीदे पढ़ते दिख रहे हैं। फिर यह मामला उठा कहाँ से और किसने उठाया? इस सवाल का जवाब जानने से पहले यह जान लें कि विवाद क्या खड़ा हुआ था।

उत्तराखंड क्रिकेट में सांप्रदायिकता का विवाद तब खड़ा हुआ जब उत्तराखंड क्रिकेट के कोच पद से वसीम जाफर ने इस्तीफ़ा दिया था। भारतीय टीम के ओपनर रहे जाफर ने इस्तीफ़ा देने के बाद कहा था कि क्रिकेट एसोसिएशन ऑफ़ उत्तराखंड के अधिकारी अयोग्य खिलाड़ियों के लिए दबाव डाल रहे थे। इसके बाद जाफर पर ड्रेसिंग रूम का सांप्रदायिकरण करने और मुसलिम खिलाड़ियों को तरजीह देने का आरोप मढ़ दिया गया।

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शुरुआत में इस मामले में कोई वसीम जाफर के समर्थन में तो नहीं आया, लेकिन जब उन्होंने प्रेस कॉन्फ़्रेंस कर सफ़ाई पेश की तो एक के बाद एक समर्थक बढ़ने लगे। पूर्व क्रिकेटर अनिल कुंबले ने ट्वीट किया। फिर मनोज तिवारी, डी गणेश और इरफ़ान पठान जैसे कई खिलाड़ियों ने वसीम जाफ़र के समर्थन में ट्वीट किए। क्रिकेट की समझ रखने वाले खेल पत्रकारों और विशेषज्ञों ने भी सोशल मीडिया पर वसीम जाफ़र का समर्थन किया। 

इस बीच वसीम जाफर के ख़िलाफ़ जो कुछ भी हवा बह रही थी उसका रूख भी बदल गया। उत्तराखंड क्रिकेट के अधिकारी वसीम जाफर के समर्थन में उतर आए। इसमें उत्तराखंड क्रिकेट संघ के सचिव महिम वर्मा भी शामिल हैं। 

उन्होंने बीबीसी से बातचीत में वसीम जाफर पर लगे सभी आरोपों को निराधार बताया। उन्होंने कहा, ‘मुझे भी इस बारे में जानकारी अख़बार से ही मिली है और ये पूरी तरह से निराधार हैं। अगर वसीम जाफ़र इस तरह के शख़्स होते तो उन्हें मैं कोच के रूप में लेकर क्यों आता? वह ऐसे शख़्स नहीं हैं।’
महिम वर्मा ने कहा कि ऐसे किसी भी आरोप को न तो उन्होंने अपनी आँखों से देखा और न ही कानों से सुना है। उन्होंने यह भी कहा कि उनके पास वसीम जाफ़र के ख़िलाफ़ खिलाड़ियों या सपोर्ट स्टाफ़ की ओर से किसी तरह की कोई लिखित शिकायत नहीं दर्ज कराई गई है।

क्रिकेट एसोसिएशन ऑफ़ उत्तराखंड के कोषाध्यक्ष पृथ्वी सिंह नेगी ने भी बीबीसी को बताया कि बीती 9 फ़रवरी तक वसीम जाफ़र के ख़िलाफ़ किसी तरह की शिकायत दर्ज नहीं कराई गई है।

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जबकि 'द इंडियन एक्सप्रेस' से महिम वर्मा ने कहा था कि उन्हें टीम से फ़ीडबैक मिला था कि जाफर ने ड्रेसिंग रूम के माहौल को 'सांप्रदायिक' कर दिया था और मुसलिम खिलाड़ियों का पक्ष लिया था। इस रिपोर्ट के अनुसार वर्मा ने कहा था कि उत्तराखंड के खिलाड़ियों ने उन्हें बताया था कि टीम के प्रशिक्षण सत्र के दौरान जाफर ने मैदान में एक मौलवी को आमंत्रित किया था और यहाँ तक ​​कि टीम के मंत्र को भी बदल दिया जिसमें हनुमान का जयकारा लगता है।

'द इंडियन एक्सप्रेस' से उन्होंने कहा था, 'बाद में मुझे बताया गया कि देहरादून में हमारे बायो-बबल प्रशिक्षण सत्रों के दौरान एक मौलवी ने आकर ग्राउंड में दो बार नमाज़ अदा की। जब एक बायो-बबल प्रशिक्षण चल रहा है तो एक मौलवी कैसे प्रवेश कर सकता है। मैंने अपने खिलाड़ियों से कहा कि उन्हें पहले मुझे सूचित करना चाहिए था, मैंने कार्रवाई की होती।'

टीम मैनेजर की क्या है भूमिका

लेकिन अब महिम वर्मा का बीबीसी ने जो ताज़ा बयान छापा है उससे सवाल उठता है कि वसीम जाफर के ख़िलाफ़ आख़िर आरोप किसने लगाए? महिम वर्मा ने उत्तराखंड टीम के मैनेजर नवनीत मिश्रा का ज़िक्र किया। महिम वर्मा ने कहा, ‘ये बयान हमारे टीम मैनेजर नवनीत मिश्रा की ओर से दिया गया है, मैंने उनसे लिखित में जवाब माँगा है कि आपने क्या देखा और जब ये सब कुछ हुआ तो मुझे सूचना क्यों नहीं दी गई।’

‘बीबीसी’ से बातचीत में नवनीत मिश्रा ने उन आरोपों से इनकार किया। उन्होंने कहा, ‘मेरे पास स्थानीय मीडिया के एक रिपोर्टर का फ़ोन आया था, जिसने मुझसे पूछा कि क्या चार-पाँच बार मौलवी आए थे, तो मैंने जवाब में कहा कि चार-पाँच बार नहीं सिर्फ़ दो बार आए थे। मैंने इससे आगे एक लफ़्ज़ नहीं कहा है।’ 

उन्होंने एपेक्स काउंसिल में शिकायत दर्ज क्यों नहीं कराई? इस पर नवनीत मिश्रा ने कहा, 'वे टूर ख़त्म होने के बाद अपनी सबमिशन रिपोर्ट में ये सारी बातें डालते, लेकिन अभी कैसे शिकायत कर सकते थे।'

क्या उन्होंने पत्रकार से ये सब भी कहा था कि वसीम जाफ़र हिंदू देवी-देवताओं के नारों से लेकर टीम का इस्लामीकरण कर रहे थे? इस सवाल के जवाब में नवनीत मिश्रा कहते हैं कि उन्होंने इस तरह की बातें मीडिया में नहीं बताई हैं।

बता दें कि दो दिन पहले महिम वर्मा का बयान आने के बाद वसीम जाफर ने एक प्रेस कॉन्फ़्रेंस की थी। इसमें उन्होंने कहा था, 'इससे नीचे कोई नहीं गिर सकता है। मुझ पर सांप्रदायिक होने और इसे सांप्रदायिक रंग देने के आरोप दुखद हैं।' उन्होंने कहा कि "यदि मैं कम्युनल होता तो मैं कहता कि 'अल्ला हू अकबर' बोलो। मैंने सत्र को सुबह कर दिया होता जिससे कि मैं दोपहर में नमाज़ अदा कर सकूँ।" बता दें कि इस मामले में उन्होंने ट्वीट भी किया है।

who accused wasim jaffer of communalism in uttrakhand cricket - Satya Hindi
मौलवी को बुलाने और नमाज़ के आरोपों पर वसीम जाफर ने कहा, 'उन्होंने कहा मैंने एक मौलवी को बुलाया और ग्राउंड पर नमाज़ अदा की। सबसे पहली चीज, मैंने मौलवी को फ़ोन नहीं किया; यह इक़बाल अब्दुल्ला थे जिन्होंने उन्हें बुलाया था। शुक्रवार को हमें नमाज़ अदा करने के लिए एक मौलवी की ज़रूरत थी। इक़बाल ने मुझसे पूछा और मैंने हाँ कही। अभ्यास समाप्त हो गया और हमने ड्रेसिंग रूम के अंदर नमाज़ की पेशकश की। यह केवल दो या तीन बार हुआ, वह भी बायो बबल सत्र के शुरू होने से पहले।'

बता दें कि इससे पहले जाफर ने अपनी नियुक्ति के बाद उत्तराखंड के लिए खेलने के लिए तीन पेशेवर खिलाड़ियों- जय बिस्सा, इक़बाल अब्दुल्ला और समद फालाह को राज्य के बाहर से चुना था। मुंबई के पूर्व खिलाड़ी अब्दुल्ला को सैयद मुश्ताक घरेलू टी-20 टूर्नामेंट के लिए कप्तान बनाया गया था। हालाँकि, इस मामले में पहले ऐसा कोई विवाद नहीं हुआ था। न ही इस मामले में किसी भी तरह की आपत्ति की कोई ख़बर आई थी।

हनुमान के जयकारे के आरोपों पर जाफर ने कहा, "मुझ पर खिलाड़ियों को 'जय हनुमान जय' के जयकारे करने की अनुमति नहीं देने के आरोप हैं। सबसे पहली बात, किसी भी खिलाड़ी ने कोई जयकारा नहीं लगाया। हमारे पास कुछ खिलाड़ी हैं जो सिख समुदाय से हैं, और वे कहते थे 'रानी माता सच दरबार की जय’। इसलिए, मैंने एक बार सुझाव दिया था कि हमारे पास 'गो उत्तराखंड' या 'कम ऑन उत्तराखंड' जैसा कुछ होना चाहिए। जैसे, जब मैं विदर्भ के साथ हुआ करता था तो टीम ने नारा दिया था, 'कम ऑन विदर्भ'। और यह मैं नहीं था जिसने नारा चुना, यह खिलाड़ियों पर छोड़ दिया गया था।"

इस मामले में अब टीम के सदस्य इक़बाल अब्दुल्ला ने दावा किया है कि ड्रेसिंग रूम में मौलवी को बुलाने की टीम के मैनेजर ने अनुमति दी थी।

इक़बाल अब्दुल्ला ने अब मौलवी के मामले में सफ़ाई दी है। 'द इंडियन एक्सप्रेस' की रिपोर्ट के अनुसार इक़बाल ने कहा, "हम एक मौलवी के बिना शुक्रवार की नमाज़ अदा नहीं कर सकते। हमने नमाज़ तब अदा की जब हमारा अभ्यास दोपहर लगभग 3:40 बजे ख़त्म हो गया। सबसे पहले मैंने वसीम भाई से पूछा कि क्या मैं मौलवी को नमाज़ के लिए बुला सकता हूँ। उन्होंने मुझे टीम मैनेजर से अनुमति लेने के लिए कहा। मैंने प्रबंधक नवनीत मिश्रा से बात की और उन्होंने कहा, 'कोई बात नहीं इक़बाल, प्रार्थना-धर्म सबसे ज़रूरी है'।"

उन्होंने कहा, 'प्रबंधक ने मुझे अनुमति दी और इसीलिए मैंने मौलवी से प्रार्थना का नेतृत्व करने के लिए कहा।'

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इक़बाल अब्दुल्ला ने कहा कि मौलवी को दो बार बुलाया गया था। उन्होंने कहा, 'अगर बायो-बबल चल रहा होता तो क्या टीम मैनेजर ने मुझे मौलवी को बुलाने की अनुमति दी होती? यदि प्रबंधक ने नहीं अनुमति दी होती तो मैंने मौलवी को नहीं बुलाया होता।'

उन्होंने कहा कि उन्हें दुख है कि वसीम जाफर के कद के खिलाड़ी को इस तरह के आरोपों का सामना करना पड़ रहा है। उन्होंने कहा कि वसीम भाई ने हमेशा टीम को सबसे ज़्यादा तवज्जो दी।

इक़बाल ने कहा, "शिविर के दौरान हम 'बार-बार हाँ, बोलो यार हाँ, आपनी जीत हो, उनकी हार हाँ...' गाया करते थे। कभी 'जो बोले सो निहाल' तो कभी 'जय श्री राम'। फिर एक खिलाड़ी ने कहा कि हमें 'गो ग्रीन’ बोलना चाहिए, फिर 'गो उत्तराखंड’, फिर ‘चलो उत्तराखंड’ और फिर 'चलो ऋषिकेश’ आया। तीन महीने के शिविर के दौरान हमारे पास कुछ 50 नारे थे। वसीम भाई ने कहा कि हमें टीम के लिए 'गो उत्तराखंड’ या 'लेट्स प्ले, उत्तराखंड’ जैसे नारे लगाने चाहिए। जैसा कि 'लेट्स प्ले, उत्तराखंड’ थोड़ा लंबा है, सभी ने 'गो उत्तराखंड’ अपनाने का फ़ैसला किया।"

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क़मर वहीद नक़वी

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