नीतीश कुमार बिहार की राजनीति में बहुत सुनहरे सपने लेकर सत्ता में आए थे। विधानसभा चुनाव के पहले जब नीतीश कुमार जनता से वादा करते थे कि किसी बिहारी को भूख के कारण बिहार नहीं छोड़ने दूँगा। लेकिन उस सपने का क्या हुआ?
हाथरस मामले से पहले से ही हाल के वर्षों में बलात्कार को लेकर नई धारणा बनकर उभरी है कि तमाम मामलों को जातीय व धार्मिक नज़रिए से देखा जाने लगा है। आख़िर क्यों?
दीन दयाल उपाध्याय की मौत की सीबीआई जाँच को लेकर न्यायालय ने उँगलियाँ उठाईं। जस्टिस चंद्रचूड़ आयोग ने भी मौत को रहस्यमय बताया। जनसंघ के प्रमुख रहे बलराज मधोक ने भी कई संदेह जताए। तो अभी भी इस पर क्यों बना हुआ है रहस्य?
आखिरकार विपक्ष की अनुपस्थिति में केंद्र सरकार ने राज्यसभा से आखिरी कृषि विधेयक भी मंगलवार को पारित करा ही लिया। न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) सुनिश्चित करने की किसानों की माँग जारी है।
केंद्र सरकार ने पिछड़े वर्ग को विभिन्न उपजातियों में बाँटकर आरक्षण व्यवस्था करने पर विचार के लिए जस्टिस जी रोहिणी की अध्यक्षता में समिति का गठन किया है। इसे लेकर पिछड़ा वर्ग आयोग से भी राय माँगी गई।
आंकड़े देखने पर यह विपक्ष की ओर से प्रचारित मामला ज्यादा लगता है कि गैर हिंदीभाषी, गैर भाषणबाज, गैर नेहरू परिवार का नेतृत्व होने से कांग्रेस बिखर जाएगी।
भारत सरकार नई शिक्षा नीति में जैसे प्रस्ताव है, हिंदुत्व की परिकल्पना पेश करने वाले पहले राष्ट्रवादी लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने भी कुछ इसी तरह की शिक्षा का सपना देखा था।
लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने 1884 में पहली बार हिंदुइज़्म से अलग हिंदुत्व की परिकल्पना पेश की। उन्होंने बार-बार ब्रिटिश सरकार से अपील की कि धार्मिक तटस्थता की नीति त्यागकर जातीय प्रतिबंधों को कठोरता से लागू करे।
उत्तर प्रदेश के ब्राह्मण मतदाताओं में ज़बरदस्त नाराज़गी है। भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के सत्ता में आने के बाद इस समाज को उम्मीद जगी थी कि कुछ बेहतर होगा। अब वे ख़ुद को ठाकुर बनाम ब्राह्मण की लड़ाई में घिरे पा रहे हैं।
जाति आधारित आरक्षण ख़त्म करने की वकालत क्यों की जाती है? क्या इससे जाति व्यवस्था का उन्मूलन होगा, आरक्षण विवाद ख़त्म होगा? औद्योगिक विकास के बीच जातीय हिंसा, उत्पीड़न, भेदभाव क्यों होते हैं?
तमिलनाडु के कोयंबटूर में इरोड वेंकट रामास्वामी नायकर ‘पेरियार’ (ईवीआर) की प्रतिमा को किसने विरूपित किया? समाज के वंचित तबक़े के संघर्षों के प्रतीक महापुरुषों के ख़िलाफ़ घृणा कौन चला रहा है?
उत्तर प्रदेश की खस्ताहाल क़ानून व्यवस्था चर्चा में है। प्रदेश के तमाम ज़िलों में हत्याएँ, बलात्कार, जातीय संघर्ष की ख़बरें आ रही हैं। हिंसा के शिकार ज़्यादातर दलित पिछड़े वर्ग के लोग बन रहे हैं।