अफ़ग़ानिस्तान तालिबान वार्ता दोहा में जब अंतिम दौर में है तो इसमें भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर भी वीडियो लिंक से शामिल हुए। इस बार तालिबान और काबुल सरकार के बीच समझौते की बड़ी उम्मीद है।
भारतीय मीडिया देश की मौजूदा समस्याओं और गंभीर स्थितियों को क्यों अनदेखा कर सुशांत राजपूत, रिया और कंगना जैसे मुद्दों में उलझा हुआ है? जस्टिस मार्कंडेय काटजू का सवाल है कि भारतीय मीडिया को क्यों नहीं दिखता कि क्रांति जैसी स्थितियाँ बन रही हैं?
देश का पूरा ध्यान एक अभूतपूर्व संकट से सफलतापूर्वक भटका दिया गया है। मीडिया को आम आदमी के मुद्दे पर बात करनी चाहिए लेकिन यह उसके एजेंडे से पूरी तरह ग़ायब है।
अंतरराष्ट्रीय एजेंसी फिच का नया अनुमान 10.5 फीसदी गिरावट (उसका जून का अनुमान 5 फीसदी का ही था) का है जबकि गोलडमैन सैक्स का अनुमान तो 14.9 फीसदी पर पहुंच गया है। एक ही दिन में आई तीसरी रिपोर्ट इंडिया रेटिंग्स की है जो 11.8 फीसदी गिरावट की भविष्यवाणी करती है।
भारत की ओर से कहा गया है कि एलएसी को एकपक्षीय तौर पर बदलने की किसी भी कोशिश को भारत स्वीकार नहीं करेगा और भारतीय पक्ष ने सीमा प्रबंध के सभी समझौतों का सटीक पालन किया है।
5 अप्रैल 2020 और 9 सितंबर 2020 की दो तारीख़ें ऐतिहासिक रहीं और रहेंगी। दोनों ही अवसरों पर रात 9 बजकर 9 मिनट पर समान तरह का एक्शन देखने को मिला। 9 सितंबर को बेरोज़गारी के ख़िलाफ़ प्रदर्शन हुआ।
राष्ट्रीय सुरक्षा क़ानून के नाम पर आप किसी को भी पकड़कर जेल में डाल दें, यह उचित नहीं। गिरफ़्तार व्यक्ति को साल भर तक न ज़मानत मिले, न ही अदालत उसके बारे में शीघ्र फ़ैसला करे, यह अपने आप में अन्याय है। पढ़ें डॉक्टर वेद प्रताप वैदिक का लेख।
‘नमस्ते ट्रंप’ आज ‘नमस्ते कोरोना’ बन चुका है। पहले नंबर पर अमेरिका है तो दूसरे नंबर पर भारत। दोनों देशों के आंकड़े जुड़कर करोड़ ‘कोरोना’ पति होने का अहसास करा रहे हैं।
एनसीआरबी के आंकड़े बताते हैं कि जेलों में वंचित तबक़ों की आबादी के हिसाब से हिस्सेदारी न सिर्फ सुनिश्चित कर दी गयी है बल्कि उनके खाते में और भी अधिक हिस्सेदारी बख्श दी गयी है।