अब प्रधानमंत्री मोदी के जिगरी यार डोनल्ड ट्रम्प के देश से भी कड़ी टिप्पणी आ गई है। अमेरिकी संस्था यूएस कमीशन ऑन इंटरनेशनल रिलीजियस फ़्रीडम ने अपनी रिपोर्ट में भारत में मुसलमानों के उत्पीड़न पर चिंता ज़ाहिर की है।
हिटलर के नाज़ी मंत्री गोएबल्स का एक सिद्धांत था 'जितना बड़ा झूठ होगा, वह उतनी ही आसानी से जनता द्वारा निगला जाएगा'। क्या भारतीय अधिकारियों का एक बड़ा वर्ग और हमारे ज़्यादातर बेशर्म और बिके हुए भारतीय मीडिया गोएबल्स के वफादार शिष्य हैं?
लॉकडाउन के कारण जब अर्थव्यवस्था पूरी तरह चौपट है, ऐसे समय में प्रधानमंत्री का कहना है कि हमारी अर्थव्यवस्था अच्छी है, उनके इस बयान का क्या आधार है, कुछ पता नहीं।
दुनिया आज जब कोविड-19 की महामारी से जूझ रही है तब उसके पास मानवता की रक्षा के लिए जन-जन की सेवा करने वाला न कोई महात्मा गाँधी है और न ही कोई मदर टेरेसा।
केंद्र सरकार ने कर्मचारियों के महँगाई भत्ते पर क़रीब डेढ़ साल के लिए रोक लगा दी। पेंशनरों को भी नहीं छोड़ा। मगर अब जब बड़े दौलतमंदों पर टैक्स लगाने का सुझाव दिया गया तो वह बौखलाई हुई है।
यदि समय रहते चुनाव करवाने के एक संवैधानिक प्रावधान को लॉकडाउन में टाला जा सकता है तो फिर मुख्यमंत्री के विधायक होने की शर्त को निलम्बित क्यों नहीं किया जा सकता?
राजीव बजाज ने हाल ही में सरकार पर निशाना साधते हुए कहा कि लॉकडाउन बेमतलब का है। न सिर्फ़ किसी भी स्वास्थ्य समस्या का इससे समाधान नहीं निकलेगा, इससे आर्थिक संकट का भी निराकरण नहीं होगा।
संक्रमित शवों का अंतिम संस्कार करना भी एक बड़ी समस्या बन चुका है। किसी के शव के अंतिम संस्कार की विधि दरअसल इस बात पर निर्भर करती है कि वह अपने जीवनकाल में किस धर्म से संबंधित था।
कोरोना संकट की सबसे ज्यादा मार ग़रीबों पर पड़ी है। लाखों प्रवासी मजदूर जहां-तहां फंसे हुए हैं, सरकारों को उन्हें उनके गांव तक पहुंचाने का इंतजाम करना चाहिए।
लॉकडाउन के कारण देश भर में कई जगहों पर कश्मीरी फंस गए। ऐसे में फ़ेसबुक पोस्ट के माध्यम से लोगों को इस बारे में बताया गया तो सैकड़ों लोग मदद के लिए आगे आए।
गुजरात में स्वास्थ्य व्यवस्था की हालत खस्ता होने के कारण ही कोरोना वायरस का संक्रमण बड़ी तेज़ी से बढ़ता जा रहा है। अब चार ज़िलों को छोड़कर सभी ज़िलों में कोरोना के मरीज़ मिल चुके हैं।