वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बजट पेश किया, लेकिन शिक्षा के लिए उन्होंने क्या दिया? पिछले बजट में की गई घोषणाएँ कब पूरी होंगी और आख़िर ये बदलाव कब आयेंगे?
गाँधी की मृत्यु के बाद सरदार पटेल के सीने पर गाँधी की हत्या का बोझ बना रहा। गाँधी के जाने के महज एक महीने बाद 5 मार्च 1948 को पटेल के सीने में दर्द उभरा।
आज से 71 साल पहले जब कट्टर हिंदूवादी नाथूराम गोडसे ने बिड़ला हाउस में 80 साल के एक कमज़ोर बूढ़े की छाती पर चार गोलियाँ दागी थीं तो वह जान रहा था कि ऐसा करके वह अपने लिए केवल बर्बादी चुन रहा है।
केंद्र में 2014 में बीजेपी की सरकार आने के बाद से विकास के सारे वादों और दावों के बावजूद हमारे देश की राजनीति हिन्दू-मुसलमान-पाकिस्तान, बँटवारा, हिंदू राष्ट्र, गाँधी, नेहरू, जिन्ना के इर्दगिर्द घूम रही है।
सरदार पटेल और नेहरू के बीच जितने मतभेद थे, उससे कई गुना बढ़ा कर पेश किया जा रहा था, जिससे दोनों ही परेशान थे। गाँधी की मृत्यु के बाद दोनों लिपट कर रोए और उसके साथ ही तमाम मतभेद भी मिट गए।
क्या भारतीय जनता पार्टी अपने ही जाल में फँस गई है? क्या उसके नेता अपने नेतृत्व के सामने सच्चाई बयान करने से कतरा रहे हैं या उन्हें आईना दिखाने की हिम्मत नहीं है?
यूरोपीय संघ की संसद में लाये गये प्रस्तावों में नागरिकता क़ानून और कश्मीर के विलय की कड़ी आलोचना की गई है। इन प्रस्तावों से कहीं भारत और यूरोपीय देशों के बीच संबंध तो ख़राब नहीं होंगे।
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने पार्टी के वरिष्ठ नेता और राज्यसभा के पूर्व सांसद पवन वर्मा के बाद पार्टी के वरिष्ठ उपाध्यक्ष प्रशांत किशोर को भी खुली चेतावनी दे डाली।
गाँधी का बहुत साफ़ मानना था कि अगर हम जान दे नहीं सकते तो हमें जान लेने का अधिकार नहीं है। उनके इस कथन और वाक्य प्रयोग को भी याद करना चाहिए कि आँख के बदले आँख पूरी दुनिया को अंधा बना देगा।