मुज़फ़्फ़रनगर किसान महापंचायत में राकेश टिकैत ने अपने भाषण में 'अल्लाहू अकबर' का नारा लगाया और सामने की भीड़ ने 'हर हर महादेव' का जयघोष किया। उनके इस भाषण को सरकार समर्थित मीडिया सांप्रदायिक बताने के प्रयास में क्यों है?
श्रीलंका में फ़ूड इमरजेंसी यानी खाद्य आपातस्थिति का ऐलान हुआ है। जानकारों का कहना है कि यह सिर्फ़ खाने का संकट नहीं है बल्कि श्रीलंका की अर्थव्यवस्था के लिए बड़ी मुसीबत का संकेत है और दरअसल यह आर्थिक आपातकाल का ऐलान है।
हिन्दी सप्ताह या हिन्दी दिवस मनाने की ज़रूरत क्या है? सितम्बर आते-आते क्यों हिन्दी की याद सताने लगती है और सरकारी समारोहों का सिलसिला शुरू हो जाता है? क्या ऐसे तरक्की करेगी हिंदी?
क्या आम जनता इस आशंका में रहती है कि प्रधानमंत्री बगैर किसी योजना के कभी भी कुछ भी घोषणा कर दे सकते हैं और उसका खामियाजा देश भुगतता रहेगा? पढ़ें श्रवण गर्ग का यह लेख।
अमेरिकी वापसी के बाद भी अफ़ग़ानिस्तान में शांति की उम्मीद कम क्यों दिखाई देती है? कई गुटों में भिड़ंत की आशंका है। हथियारों का जो ज़खीरा अमेरिकी अपने पीछे छोड़ गए हैं, वह कई नए हिंसक गुट पैदा कर देगा।
अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान के कब्जे के बाद अब आधिकारिक तौर पर सत्ता में तालिबान ही है। चीन, रूस जैसे देशों के अलावा पश्चिमी देश भी तालिबान को कट्टर इसलामिक पद्धति मानकर आगे बढ़ रहे हैं। भारत को क्या रुख अपनाना चाहिए?
बजरंग दल ने अहमदाबाद की एक दुकान में रखी कामसूत्र को धर्मविरोधी क्यों बताया? क्या देश में दकियानूसी सोच हावी होती जा रही है? 'भारत, अफ़ग़ानिस्तान से बेहतर है' जैसी तुलना की नौबत क्यों आई?
भारतीय समाज में जो विघटन पाकिस्तान तीन दशकों में पैदा नहीं कर सका वह काम भारत में ही रहने वाले 'स्वयंभू राष्ट्रवादियों' ने महज़ एक दशक के भीतर ही नफ़रत फैलाकर कर डाला।
कृष्णभक्त कवि सूरदास ने मुग़ल सम्राट अकबर को एक पत्र लिखा था। सूरदास के पत्र को पढ़ कर काशी के हाकिम के ऊपर अकबर को अत्यंत क्रोध आया और उन्होंने उसे बदल दिया...।
बीजेपी संसदीय बोर्ड में कई पद खाली हैं, सीवीसी, न्यायपालिका, अफ़सरशाही में कई पद खाली पड़े हैं, पर नरेंद्र मोदी या जे. पी. नड्डा को योग्य लोग नहीं मिल रहे हैं।
इसलामिक स्टेट खुरासान का मक़सद पहले मध्य पूर्व और उसके बाद भारत में इसलामी ख़िलाफ़त की स्थापना करना है। पर क्या होता है इसलामी ख़िलाफ़त? पढ़े प्रमोद मल्लिक का यह लेख।
अपने पिछले आलेख में मैंने विभाजन की विभीषिका को एक स्मृति दिवस के रूप में मनाने के पीछे के मक़सद को ढूँढने की कोशिश की थी पर सफलता नहीं मिली। आलेख पर जो प्रतिक्रियाएँ मिली हैं उनसे कुछ संकेत ज़रूर मिलते हैं....