दिल्ली में दंगे होने के ठीक पहले वहाँ विधानसभा चुनाव हुए थे, जिनमें बीजेपी ने नफ़रत का माहौल बनाया था। तो क्या ये दंगे नफ़रत की उस राजनीति की वजह से हुए थे?
मुसलिम दुनिया में अपने साथी देशों को भारत विरोधी बयान देने के लिये उकसाने के बाद पाकिस्तान को अब विश्व रंगमंच पर भारत के ख़िलाफ़ माहौल बनाने का सुनहरा मौक़ा हाथ लग गया है।
भारत में एक पुरानी कहावत है- “कोस कोस पर बदले पानी, चार कोस पर बानी”। यानी कोस-कोस पर पानी बदल जाता है और हर चार कोस पर वाणी यानी भाषा बादल जाती है। होली उत्सव मनाने की प्रक्रिया और इसके प्रचलित क़िस्से भी कई हैं।
पिछले दिनों जब मैंने दंगा प्रभावित इलाक़ों का दौरा किया तो मुझे ऐसा लग रहा था जैसे मैं किसी युद्ध क्षेत्र में आ गया हूँ। दुकान और मकान जले हुए थे और इलाक़े की हर गली का यही हाल था। इन दंगों में 50 से ज़्यादा लोग मारे गए।
19वीं शताब्दी के भारतीय सिख सम्राट महाराजा रणजीत सिंह का बीबीसी के एक सर्वेक्षण में पूरी दुनिया की तमाम ऐतिहासिक हस्तियों के बीच सर्वकालिक महान शासक चुना जाना एक चौंकाने वाली ख़बर है।
2017 से रिज़र्व बैंक लगातार यस बैंक पर कड़ी नज़र रख रहा था। यस बैंक ने बहुत भारी मुश्किल से गुज़र रही यानी क़र्ज़ के बोझ में दबी कंपनियों को क़र्ज़ दे रखे थे। वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण का यह दावा है।
सामाजिक शत्रुता, आर्थिक मंदी और वैश्विक स्वास्थ्य संकट भारत के लिए एक बड़े ख़तरे की घंटी है। सामाजिक अराजकता और आर्थिक बर्बादी हमने ख़ुद अपने आप को दिए हैं जबकि कोरोना वायरस का खौफ़ बाहरी कारणों से है।
न्यायपालिका आज भी हमारे लोकतंत्र का सबसे असरदार स्तंभ है, जिसे हर तरफ़ से आहत और हताश-लाचार आदमी अपनी उम्मीदों का आख़िरी सहारा समझता है। न्यायपालिका का क्षरण क्यों?
क्या दिल्ली का दंगा किसी राजनीतिक प्रयोग का नतीजा था? क्या यह प्रयोग सफल रहा? क्या यह प्रयोग दूसरे जगहों पर भी दुहराया जाएगा? ये सवाल पूरे देश को मथ रहे हैं।